उर्दू को बचाना ही मुंशी प्रेमचंद जैसे ख़ादिमीने उर्दू को सच्ची श्रद्धांजलि है: एम. डब्ल्यू अंसारी
Article : प्रसिद्ध उपन्यासकार, उर्दू के पहले अफसाना निगार, उर्दू साहित्य में एक ऐसा नाम जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, हकीकत पसंदी की तरफ अपने ज़हन व कलम का रूख करने वाले,
यौमे पेदाइश मुंशी प्रेमचंद
Article : प्रसिद्ध उपन्यासकार, उर्दू के पहले अफसाना निगार, उर्दू साहित्य में एक ऐसा नाम जिसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, हकीकत पसंदी की तरफ अपने ज़हन व कलम का रूख करने वाले, जिनके कलम से आती है भारत की मिट्टी की खुशबू आती है, वो नाम है धनपत राय उर्फ मुंशी प्रेमचंद का, जिनका आज जन्मदिन है। आज ही के दिन 31 जुलाई 1980 को संगीत की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। इस अवसर पर हम भारत के सभी नागरिकों की ओर से दोनों महान विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
मोहम्मद रफी भारतीय फिल्म जगत, बॉलीवुड के एक लोकप्रिय पाश्र्व गायक और गज़ल लेखक हैं। उनका जन्म 24 दिसंबर 1924 को और निधन 31 जुलाई 1980 को हुआ । मोहम्मद रफी का जन्म अमृतसर के एक गाँव कोटला सुल्तान सिंह में हुआ था। आपकी आवाज का हर कोई दीवाना है, हम भारत सरकार से अपील करते हैं कि देश का नाम रोशन करने वाले मोहम्मद रफी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए ।
मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत रॉय है, लेकिन साहित्य जगत में वे प्रेमचंद के नाम से जाने जाते हैं। आप उर्दू के पहले कथाकार हैं। भारत के अन्य कथा लेखकों की तरह उन्होंने प्रेम, इश्क, हीरो, हीरोइन जैसे सतही विषयों को अपने इज़्हारे ख्याल का माध्यम नहीं बनाया, बल्कि अपने ज़ेहन व कलम को हकीकत पसंदी की ओर केंद्रित किया। निस्संदेह, आपने उर्दू भाषा की जो खिदमात की हैं, वे अविस्मरणीय हैं। लेकिन आज उर्दू के व्यापक दायरे को सीमित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत की बेटी और हिंदी की बहन उर्दू के साथ हमारे देश भारत में दुर्व्यवहार किया जा रहा है। जिस उर्दू ने मुंशी प्रेमचंद और उनके जैसे हजारों कवियों, उपन्यासकारों, लेखकों को पूरी दुनिया से परिचित कराया, आज उसी उर्दू के साथ जो दुर्व्यवहार हो रहा है, वह निश्चित रूप से उनकी आत्मा को आहत करेगा ।
हालांकि नियम यह है कि जिसका जन्म जहाँ होता है, उसकी निसबत उसी जगह की तरफ की जाती है। फिर चाहे वो इंसान हो या भाषा, उर्दू भाषा का जन्म भी भारत में हुआ, इसीलिए इस भाषा को भारत की बेटी और हिंदी की बहन कहा जाता है। उर्दू भाषा पूरे भारत को और केवल भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को एक सूत्र में बांधती है और लगातार बांधने का काम कर रही है।
जो भाषा आज भारत के अलग-अलग क्षेत्रों को जोड़ने का काम कर रही है। नफरत की आँधी में प्यार का दीया जलाए हुए है। उसी उर्दू भाषा के साथ आज इस देश में भेदभाव किया जा रहा है। हालाँकि, यदि आप अतीत पर नजर डालें तो आपको पता चलेगा कि क्या हिंदू या मुसलमान सभी उर्दू में शिक्षा हासिल करते थे और गैर-उर्दू नाम वाले लोग उर्दू बहुत अच्छी तरह से जानते थे क्योंकि उर्दू एक मीठी और मधुर भाषा है और इसे किसी विशेष धर्म या समुदाय से जोड़ना नासमझी है।
उर्दू को अपने ही देश भारत में अपने ही लोगों से वह दर्जा नहीं मिल पा रहा है, जो मिलना चाहिए। इसके बावजूद, उर्दू अपनी आंतरिक ताकत के कारण दुनिया की 7वीं बोली जाने वाली भाषा बन गई है और यहां तक कि यूएनओ की आधिकारिक भाषा भी बन गई है। आज उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की जरूरत है । महाविद्यालयों में उर्दू, अरबी, फारसी विभाग खोले जाएं। छात्रों को उर्दू पाठ्यक्रम की पुस्तकें विशेषकर विज्ञान, गणित, जीवविज्ञान, प्रौद्योगिकी आदि की पुस्तकें उपलब्ध करायी जानी चाहिए। यह सरकार की जिम्मेदारी है, जिसे सरकार पूरा नहीं कर रही है।
मध्य प्रदेश के कॉलेजों में एडमिशन चल रहे हैं, लेकिन राजधानी भोपाल के पीएम एक्सीलेंस कॉलेज में उर्दू छात्र एडमिशन के लिए चक्कर लगा रहे हैं। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सभी विषयों के लिए ऑनलाइन पोर्टल खोल दिया गया है लेकिन उर्दू छात्रों के प्रवेश के लिए ऑनलाइन पोर्टल नहीं खोला जा रहा है। जो उर्दू छात्रों के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़ कमोबेश सभी प्रांतों और खासकर उत्तर भारत में उर्दू के साथ ऐसा ही व्यवहार हो रहा है।
प्रान्तीय सरकारें, चाहे वे किसी भी पार्टी की हों, उर्दू के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया अपना रही हैं और वे जानबूझकर अपने काम की जिम्मेदारी नहीं निभा रही हैं। सभी उर्दू प्रेमियों को एक मंच पर आकर कंधे से कंधा मिलाकर उर्दू के अस्तित्व और विकास के लिए आवाज उठानी चाहिए। सभी सरकारों ने उर्दू भाषा के प्रति जो पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया है, उसके खिलाफ आवाज उठानी होगी ।
आज उर्दू के पहले कथाकार मुंशी प्रेमचंद के जन्मदिन पर आइए हम सब संकल्प लें कि हम भारत की बेटी को बचाने का बीड़ा उठाएंगे और निश्चित ही हमारे छोटे-छोटे प्रयासों से एक बड़ी क्रांति आएगी। इसके लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज उर्दू लिपि है। हमें उर्दू लिपि को अपनाना होगा। इस प्रकार हम स्वयं अपनी भाषा के संरक्षक बन सकते हैं और अपनी भाषा के अस्तित्व और विकास में भाग ले सकते हैं और यही मुंशी प्रेमचंद और उनके जैसे खादिमीने उर्दू के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।