अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप ने रचा इतिहास, कमला को दी करारी मात, पहली बार 270 का जादुई आंकड़ा किया पार, कई देशों ने दी बधाई

Trump created history in the US Presidential elections gave a crushing defeat to Kamala crossed the magical figure of 270 for the first time many countries congratulated

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप ने रचा इतिहास, कमला को दी करारी मात, पहली बार 270 का जादुई आंकड़ा किया पार, कई देशों ने दी बधाई

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंगलवार 5 नवंबर को वोटिंग हुई. इस चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी  भारतीय मूल की कमला हैरिस के बीच मुख्य मुकाबला था. कुछ जगहों पर मतगणना जारी है. लेकिन अमेरिकी कानून के मुताबिक ट्रंप को विजेता घोषित कर दिया है.
अभी भी कुछ राज्यों में मतगणना जारी है. अलास्का और विस्कॉन्सिन के अनुमानों के मुताबिक डोनाल्ड ट्रंप को 279 इलेक्टोरल वोट मिल सकते हैं. जबकि कमला हैरिस के खाते में 223 वोट होंगे. बता दें कि कुल 538 वोटों में जीत के लिए कम से कम 270 वोटों की जरुरत होती है. सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक कमला हैरिस न्यू हैम्पशायर में जीत हासिल कर सकती हैं.
अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत का औपचारिक एलान हो चुका है.ज्यादातर मतगणना पूरी हो चुकी है और रिपब्लिकन प्रत्याशी ट्रंप को विजेता घोषित किया गया है. स्थानीय समय के मुताबिक बुधवार शाम 4 बजे तक घोषित परिणाम के मुताबिक ट्रंप को 277 इलेक्टोरल वोट मिले हैं. रिपब्लिकन उम्मीदवार ट्रंप की प्रतिद्वंद्वी और डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी कमला हैरिस को 224 वोट मिले हैं. शपथ के बाद ट्रंप जल्द ही कैबिनेट की भी घोषणा कर सकते हैं, जिसमें एक भारतवंशी को अहम भूमिका मिल सकती है. 
दुनियाभर से ट्रंप को जीत की शुभकामनाएं मिल रही है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पाकिस्‍तान पीएम शहबाज शरीफ, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्म, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने भी डोनाल्ड ट्रंप को जीत के लिए बधाई दी है. 
भारतवंशी विवेक रामास्वामी को ट्रंप के कैबिनेट में अहम भूमिका मिल सकती है. रिपब्लिक पार्टी से पहले विवेक ने भी राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने की दावेदारी पेश की थी. लेकिन कुछ समय बाद विवेक ने अपना अभियान खत्म करते हुए ट्रंप को समर्थन दे दिया था.
रुस ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के रिजल्ट पर चौंकाने वाली प्रतिक्रिया दी है. राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की सुनिश्चित जीत को लेकर क्रेमलिन ने कहा कि फिलहाल वे आख़री नतीजों की घोषणा का इंतजार करेंगे. बता दें कि कई राज्यों में मतगणना जारी है. डेमोक्रेट प्रत्याशी कमला हैरिस की हार पक्की हो चुकी है. रिपब्लिकन खेमे के प्रत्याशी और पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप बहुमत के आंकड़े से बहुत आगे निकल चुके हैं.
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पहली अहम तारीख- 10 नवंबर
वोटों की गिनती और नतीजों के बाद अब सभी राज्यों के इलेक्टर्स तय होंगे. यह मिलकर इलेक्टोरल कॉलेज बनाएंगे जो राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे. 10 नवंबर के बाद राज्यों में इलेक्टर को सर्टिफाई (सत्यापित) करने की प्रक्रिया शुरु होती है. इसे सर्टिफिकेट ऑफ असर्टेनमेंट कहते हैं. अगर कहीं कोई विवाद होता है और दोबारा काउंटिंग की स्थिति बनती है तो इस प्रक्रिया में देरी भी लग सकती है. इस चुनाव में यह प्रक्रिया पूरी करने की आखिरी तारीख 11 दिसंबर है.
जो सर्टिफिकेट जारी होते हैं. उसमें यह भी लिखा होता है कि जीतने वाले इलेक्टर्स राष्ट्रपति चुनाव में किसे सपोर्ट कर रहे थे. हर एक सर्टिफिकेट की सात कॉपियां बनती हैं. जिस पर गवर्नर का साइन और राज्य का मुहर लगा होता है. इस तरह. आप देखेंगे कि 11 दिसंबर तक सभी 50 राज्यों में 538 इलेक्टर्स तय हो चुके होंगे.
दूसरी अहम तारीख- 17 दिसंबर
17 दिसंबर को अपने-अपने राज्यों में सभी इलेक्टर्स मिलेंगे और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति का चुनाव करेंगे. ये इलेक्टर्स अपने वोट के साथ साइन किया हुआ सर्टिफिकेट वॉशिंगटन डीसी भेजेंगे. अमेरिकी संविधान में यह कहीं नहीं लिखा है कि इलेक्टर को पॉपुलर वोट को फॉलो करना होगा.
लेकिन कई राज्यों के कानून में ऐसा करना जरूरी है. जुलाई 2020 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि जिन राज्यों में कानून लागू है, वहां के इलेक्टर्स को पॉपुलर वोट को ही फॉलो करना होगा. यानी जिसे जनता चुनेगी उसे ही वोट देना होगा.
तीसरी अहम तारीख- 6 जनवरी 2025
सभी राज्यों से इलेक्टर के वोट 6 जनवरी को वॉशिंगटन पहुंचेंगे. यहीं अमेरिकी संसद कैपिटल हिल है. जनवरी के पहले हफ्ते में सांसदों का संयुक्त सत्र (जॉइंट सेशन) बुलाया जाता है. इसी सत्र में उपराष्ट्रपति के सामने ही इलेक्टर्स के वोटों को गिना जाता है.
जो कैंडिडेट 538 में से 270 वोटों के आंकड़े को पार कर जाएगा, उसके नाम का नए राष्ट्रपति के रूप में ऐलान हो जाता है. क्योंकि मौजूदा उपराष्ट्रपति सीनेट के अध्यक्ष के रूप में भी काम करते हैं, तो कमला हैरिस ही 2025 में इस गिनती की अध्यक्षता करेंगी.
चौथी अहम तारीख- 20 जनवरी 2025
वोटिंग के अलावा अमेरिका में यह भी पहले से तय होता है कि नया प्रेसिडेंट कब शपथ लेगा. अमेरिकी संविधान के मुताबिक, 20 जनवरी को नया राष्ट्रपति पद की शपथ लेता है. इसी दिन मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन चुने हुए नए राष्ट्रपति को सत्ता सौपेंगे. इसे इनॉगरेशन डे भी कहते हैं. पहली बार साल 1937 में 20 जनवरी को शपथ ली गई थी. उस समय अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ लिया था.
शपथ ग्रहण समारोह में क्या होगा?
शपथ ग्रहण समारोह को लेकर 1933 में तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने एक परंपरा की शुरूआत की थी जो आज भी अमेरिका में जारी है. इस दिन सबसे पहले नए राष्ट्रपति अपने आवास से निकलकर चर्च जाते हैं. इसके अलावा कैपिटल बिल्डिंग में आने से पहले नए राष्ट्रपति, मौजूदा राष्ट्रपति से मिलने जाते हैं. यहां दोनों के बीच औपचारिक संवाद होता है.
हालांकि, जब जो बाइडेन 2021 में राष्ट्रपति बने थे तो उनके शपथ ग्रहण के दौरान पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प लंबी छुट्टी पर चले गए थे. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि अगर इस बार ट्रंप राष्ट्रपति बनते हैं तो क्या जो बाइडेन उनके शपथ ग्रहण में शामिल होते हैं या नहीं. इस मुलाकात के बाद नए राष्ट्रपति कैपिटल बिल्डिंग जाते हैं.
जहां सबसे पहले उपराष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाती है. उसके बाद बारी आती है राष्ट्रपति के शपथ लेने की. प्रेसिडेंट को शपथ दिलाने की जिम्मेदारी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की होती है. शपथ के बाद राष्ट्रपति अमेरिका की जनता को संबोधित करते हैं. यह कार्यक्रम हो जाने के बाद नए राष्ट्रपति की प्रेसिडेंट रूम में साइनिंग सेरेमनी होगी. इस दौरान राष्ट्रपति नॉमिनेशन और पद ग्रहण करने के बाद अपने पहले आदेशों को साइन करते हैं.
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भारतीय मूल की कमला हैरिस की मां श्यामला गोपालन तमिलनाडु की रहने वाली हैं. उनके पिता जमैका के मूल निवासी है. अमेरिका में मुलाकात के बाद उनके माता-पिता ने शादी की थी. हालांकि, बाद में दोनों के बीच तलाक हो गया था. वैसे कमला हैरिस अपनी मां के साथ कई बार चेन्नई में अपने नाना के घर आ चुकी हैं.

ट्रंप की जीत से ये हो सकते हैं भारत को 5 फायदे
1. भारतीय एक्सपोर्ट सेक्टर को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकता है. चूंकि चीनी प्रोडक्ट पर हाई टैरिफ हैं. ये अमेरिकी मार्केट में ऑटो पार्ट्स, सौर उपकरण और रासायनिक उत्पादन जैसे क्षेत्रों में भारतीय निर्माताओं की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ा सकते हैं.
2. ट्रंप की जीवाश्म ईंधन नीतियों और चीनी की धीमी इकनॉमिक ग्रोथ के कारण ऊर्जा लागत कम हो सकती है. इससे एचपीसीएल, बीपीसीएल, आईओसी जैसी भारतीय तेल कंपनियों और आईजीएल और एमजीएल जैसी गैस वितरण कंपनियों के लिए फायदा हो सकता है.
3. मैन्युफैक्चरिंग और डिफेंस सेक्टर में तेजी आ सकती है. अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग और सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने पर उनका ध्यान भारत डायनेमिक्स और एचएएल जैसी भारतीय रक्षा कंपनियों के लिए बेहतर हो सकता है.
4. दुनिया के कई देशों में फैले तनाव को ट्रंप खत्म कर सकते हैं। ऐसे में सप्लाई चेन में सुधार होगा जिससे भारतीय व्यापार को मदद मिल सकती है. ट्रंप का जोर अमेरिका के औद्योगिक विकास पर होता है. ऐसे में दोनों देशों में काम करने वाली कंपनियों को लाभ हो सकता है। इनमें एबीबी, सीमेंस, कमिंस, हनीवेल, जीई टीएंडडी और हिताची एनर्जी शामिल हैं.
5. ट्रंप के नेतृत्व में कारोबारी माहौल में सुधार हो सकता है. इससे संभावित रूप से कॉर्पोरेट टैक्स में कमी आ सकती है. वहीं व्यापार-अनुकूल नीतियों के माध्यम से भारतीय शेयर मार्केट में भी तेजी आ सकती है.
ट्रंप की जीत से भारत को ये हो सकते हैं 5 नुकसान
1. महंगाई बढ़ सकती है। ब्याज दरों में तेजी और अमेरिकी चीजों की बढ़ी हुई लागत से भारतीय कारोबार पर असर पड़ सकता है.
2. ट्रंप की आर्थिक नीतियों से अमेरिकी डॉलर मजबूत हो सकता है. टैक्स कटौती और राजकोषीय उपायों के माध्यम से बॉन्ड यील्ड बढ़ सकती है. इससे रुपये में गिरावट आएगी. डॉलर के मजबूत होने से भारत जिन चीजों का आयात करता है. उसके लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी. विशेष रुप से तेल के लिए। इससे भी घरेलू महंगाई बढ़ेगी.
3. ट्रंप की जीत से भारतीय शेयर मार्केट में शुरु में बेशक तेजी आई हो. लेकिन लंबे समय तक यह तेजी रहेगी. इस पर संशय रहेगा. ट्रंप की नीतियां शेयर मार्केट में अस्थिरता पैदा कर सकती हैं. पिछले डेटा से पता चलता है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिकी बाजारों ने भारतीय बाजारों से बेहतर प्रदर्शन किया. इस दौरान नैस्डैक को 77% की बढ़त मिली थी। वहीं निफ्टी मात्र 38% ही चढ़ पाया था.
4. वीजा को लेकर भी भारतीयों के लिए परेशानी हो सकती है. ट्रंप ने पिछली बार H-1B वीजा पर बैन लगा दिया था. इससे अमेरिका में मौजूद भारतीय आईटी कंपनियां बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी.
5. ट्रंप ने भारत की व्यापार नीतियों की आलोचना की है. ट्रंप प्रशासन भारत पर ट्रेड बैरियर को कम करने के लिए दबाव डाल सकता है. इससे आईटी, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे.
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