डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही भारत पर 100% टैरिफ लगाने की दी खुलेआम धमकी, मची खलबली, बिगड़ जाएगा दोस्ती का गणित?
Donald Trump openly threatened to impose 100% tariff on India as soon as he became the President, causing panic, will the math of friendship get spoiled?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जैसे ही अपना कार्यभार संभाला है. वैसे ही वे अपने फैसलों से पूरी दुनिया को चौंका रहे हैं. लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप ने जो फैसला लेने के संकेत दिए हैं. उससे अब अमेरिका के भारत से रिश्ते बिगड़ सकते हैं. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS देशों को धमकी दी है कि अगर वे डॉलर की जगह अपनी नई मुद्रा जारी करेंगे तो सभी सदस्य देशों को इसका अंजाम भुगतना होगा. इन देशों पर सभी आयातों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा.
भारत और अमेरिका एक दूसरे के साथ बड़े स्तर पर कारोबार करते हैं. ऐसे में ट्रंप की विदेशी सामान पर टैरिफ की चेतावनी चिंताजनक जरुर है. भारत में अमेरिका से आने वाले कई सामानों पर भारी टैरिफ लगता है. ऐसे में ट्रंप की तरफ से भी विदेशी सामान पर अगर भारी टैरिफ लगाया गया तो इसका कितना असर भारत पर देखने को मिल सकता है?
टैरिफ लगाने के मामले में डोनाल्ड ट्रंप की 'जैसे को तैसा' की नीति भारत के लिए चिंता की बात जरूर हो सकती है. अगर ऐसा होता है तो इसका भारी असर भारत के एक्सपोर्ट सेक्टर पर देखने को मिल सकता है. खासतौर पर इसका असर उन चीजों पर देखने को ज्यादा मिलेगा जो मुख्य रूप से अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं.
ट्रंप की नीति भारतीय निर्यातकों के लिए परेशानी पैदा कर सकती है. उन्हें अमेरिकी बाजार में अपना सामान बेचना और ज्यादा मुश्किल हो सकता है. इसका असर उनकी कमाई पर देखने को मिल सकता है जिसका असर भारतीय बाजार पर भी देखने को मिल सकता है. इससे न सिर्फ रोजगार से जुड़ीं समस्याएं बल्कि देश की आर्थिक प्रगति भी प्रभावित हो सकती है.
अगर ट्रंप भारी टैरिफ लगाते हैं तो सिर्फ कारोबार पर ही इसका असर नहीं होगा. ऐसा करने से दोनों देशों में कंज्यूमर प्राइस बढ़ सकता है. दरअसल, टैरिफ बढ़ेगा तो आयात करने वाली चीजों की कीमत में भी उछाल आएगा. अमेरिका में कंपनियां यह अतिरिक्त भार अपने उपभोक्ताओं पर थोप सकती हैं जिससे बाजार में महंगाई आ सकती है. इसी तरह भारत में भी अमेरिकी सामान और ज्यादा महंगा हो जाएगा और उन तक आम लोगों की पहुंच धीरे-धीरे कम हो सकती है.
नई मुद्रा जारी करने के बारे में सोचा भी तो लगेगा टैक्स
ट्रंप ने वैश्विक व्यापार में डॉलर के इस्तेमाल में आई कमी का जिक्र करते हुए कहा कि अगर ब्रिक्स देश डॉलर को कमजोर करते हुए अपनी नई मुद्रा जारी करने के बारे में सोचते भी हैं तो उन पर 100% टैरिफ लगेगा. जिससे वे इस सोच को ही फौरन छोड़ देंगे.
ट्रंप ने ये भी कहा कि उनके इस बयान को BRICS धमकी के रुप में नहीं बल्कि इस मुद्दे पर उनके साफ रुख के तौर पर देखा जाना चाहिए. ट्रंप ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी संकेत दिया था कि अमेरिका ब्रिक्स देशों के दबाव में हैं. ट्रंप ने कहा कि अगर BRICS अपनी व्यापार मुद्रा जारी करते हैं और उससे व्यापार करते है तो ठीक है. फिर वे अमेरिका के साथ इन देशों के व्यापार पर कम से कम 100% टैरिफ लगाएंगे.
ब्रिक्स देशों ने लिया था फैसला
दरअसल साल 2023 में 15वें ब्रिक्स सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन (Vladimir Putin) ने डी-डॉलरीकरण (डॉलर के मूल्य को कम करने का प्रयास) का आह्वान करते हुए कहा था कि ब्रिक्स देशों को आपस में सहयोग बढ़ाते हुए अपनी एक नई मुद्रा जारी करनी चाहिए और उसी में व्यापार करना चाहिए. पुतिन के इस प्रस्ताव को भारत समेत सभी देशों ने सहमति जताई थी. इसके बाद 2024 में रुस (Russia) के कजान में हुई बैठक में भी इसे दोहराया गया.
भारत का क्या है रुख
कजान में 2024 में हुए इस सम्मेलन में पीएम मोदी (Narendra Modi) ने कहा था कि भारत ब्रिक्स देशों के बीच वित्तीय एकीकरण बढ़ाने के लिए की जा रही कोशिशों का स्वागत करता है. ये स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और सुचारु सीमा पार भुगतान BRICS देशों के आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगा.
वहीं नवंबर 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर (S. Jaishankar) ने भी मुंबई में भारत-रुस अंतर-सरकारी आयोग की बैठक में कहा था कि राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार का पारस्परिक निपटान बहुत ज्यादा जरुरी है. खासतौर पर वर्तमान हालातों को देखते हुए इसके अलावा कई और मंचों पर एस जयशंकर ने ये साफ करने की कोशिश की है कि ब्रिक्स देशों की नई मुद्रा इसलिए नहीं लाई जा रही कि वे अमेरिका के डॉलर को कमजोर बनाना चाहते हैं. बल्कि इसलिए कि ये देश सहूलियत से व्यापार कर सकें.
एस जयशंकर ने कहा था कि अमेरिकी नीतियां कुछ देशों से व्यापार को बहुत कठिन बना देती हैं. इसलिए भारत ने अपने व्यापार हितों को ध्यान में रखते हुए बस इस तरह के एक समाधान की खोज की है. क्योंकि BRICS के कई ऐसे देश हैं. जिनके पास लेन-देन के लिए डॉलर नहीं होता है.
अभी ब्रिक्स देश किसी अंतिम नतीजे पर नहीं
दरअसल ब्रिक्स मुद्रा को जारी करने पर अभी ये संगठन अपने आखिरी फैसले पर नहीं पहुंचा है. इसका सबसे बड़ा कारण खुद का रुस का चीनी मुद्रा में व्यापार करना है. रिपोर्ट्स के मुताबिक वर्तमान में चीनी मुद्रा युआन रुस में सबसे ज्यादा व्यापार करने वाली मुद्रा बन गई है. वहां पर 90% व्यापार रुबल (रुस की मुद्रा) में हो रहा है.
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