उर्दू के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के कार्यक्रम में उर्दू सिर्फ हेडलाइन, उर्दू के फरोग़ व तहफ्फुज़ का तज़किरा गायबः एम. डब्ल्यू. अंसारी

उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्ज़ा असदुल्लाह खान गालिब की हाल ही में 27 दिसंबर को 226वीं जयंती मनाई गई है। बेशक, गालिब को देश-विदेश में किसी परिचय की जरूरत नहीं है। हर साल उनके जन्मदिन पर गालिब को याद करने के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं।

उर्दू के शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के कार्यक्रम में उर्दू सिर्फ हेडलाइन, उर्दू के फरोग़ व तहफ्फुज़ का तज़किरा गायबः एम. डब्ल्यू. अंसारी

(आईपीएस) पूर्व डीजी
 
उर्दू और फारसी के महान शायर मिर्ज़ा असदुल्लाह खान गालिब की हाल ही में 27 दिसंबर को 226वीं जयंती मनाई गई है। बेशक, गालिब को देश-विदेश में किसी परिचय की जरूरत नहीं है। हर साल उनके जन्मदिन पर गालिब को याद करने के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं। हर साल की तरह इस साल भी मिर्जा गालिब को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए गज़ल शिक्षण संस्थान की ओर से रजा नवादवी, डॉ. अंजुम बाराबंकवी, डॉ. महताब आलम और प्रिंस जैन द्वारा रविंदर भवन, भोपाल में एक भव्य समारोह का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम बहुत ही अद्भुत एवं सफल रहा, निःसंदेह कार्यक्रम के आयोजक बधाई के पात्र हैं।

यह याद रखना चाहिए कि मिर्ज़ा गालिब ने उर्दू और फारसी दोनों भाषाओं में शायरी की। हालाँकि उनका फारसी दीवान उनके उर्दू दीवान से कम से कम पाँच गुना लंबा है, लेकिन उनकी प्रसिद्धि उर्दू में उनकी कविता पर है। इसलिए जहां उर्दू के महान शायर गालिब के बारे में कार्यक्रम हो वहां उर्दू के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है। खालिस गालिब के नाम पर होने वाले कार्यक्रम में अगर इस बात का ध्यान नहीं रखा गया तो यह निश्चित रूप से उर्दू के साथ अन्याय है और यह मिर्जा गालिब को सच्ची श्रद्धांजलि नहीं होगी।

कार्यक्रम में मुशायरा, गज़ल और बैत बाज़ी अच्छी बात है, लेकिन साथ ही, जो कि उर्दू की रूह है, ‘उर्दू लिपि’ पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है, जैसा कि कार्यक्रम में आये विशिष्ट अतिथियों ने बताया। गौर करने वाली बात यह भी है कि ऐसे साहित्यिक कार्यक्रम में जहां उर्दू और उर्दू भाषी हों, वहां उर्दू भाषा को महज बैनर की हेडलाइन बनाना और बाकी जगह से उर्दू को गायब कर देना ठीक नही। यह न सिर्फ उर्दू से बेवफाई है बल्कि मिर्जा गालिब का अपमान भी है।

गालिब जैसे महान शायर के कार्यक्रम की बात करते समय हमें यह सोचना चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ियों को उर्दू भाषा में पाठ्यपुस्तकें कैसे उपलब्ध करा सकते हैं और इसे अपनी पहली जिम्मेदारी समझें। विशेष रूप से विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान और गणित आदि के लिए पुस्तकें प्रदान करें तभी उर्दू बाकी रह सकती है। साथ ही उर्दू के नाम पर हम जो भी कार्यक्रम करें उसमें नई पीढ़ियों को आमंत्रित किया जाना चाहिए, मशहूर कवियों और गायकों को भी आमंत्रित किया जाना चाहिए, लेकिन युवा पीढ़ी को मौका दिया जाना चाहिए और उनकी बात सुनी जानी चाहिए। तभी सही मायने में उर्दू को बढ़ावा मिलेगा।

इसके अलावा हमें सरकार से अपना जायज़ हक भी मांगना चाहिए। अगर हम अपनी भाषा की रक्षा के लिए कदम नहीं उठाएंगे और आवाज़ नहीं उठाएंगे तो सरकार हमें हमारा हक नहीं देगी और उर्दू के नाम पर जो संस्थाएं बनी हैं, वे भी धीरे-धीरे बंद हो जाएंगी। अंग्रेजी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है, इसी तरह अरबी और उर्दू भी यूएनओ की भाषाएं हैं। अगर हम अपनी मातृभाषा को अधिक बढ़ावा देंगे तो ज़ाहिर तौर पर युवा पीढ़ी के लिए रोज़गार के अवसर भी उपलब्ध होंगे और इस तरह अंग्रेजी भाषा जो हमारी भाषा पर भारी पड़ रही है वह धीरे-धीरे हल्की हो जाएगी और हमारी भाषा को बढ़ावा मिलेगा। उर्दू भाषा का प्रचार और संरक्षण ही मिर्ज़ा गालिब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

अंत में ये कि कार्यक्रम में आए तमाम मेहमान इनमें डॉ. कैलाश चंद्र शर्मा, डॉ. अली अब्बास उम्मीद, डॉ. परवीन कैफ, नफीसा अना, सूर्य प्रकाश अस्थाना, डॉ. एहसान आज़मी, वलीउल्लाह वली, सपना एहसास, अमित शुक्ला, अनबर खरबंदा, इंदु अग्रवाल, डॉ. मुहम्मद नसीम खान, डॉ. ओरिना अदा, फरज़ाना भोपाली, बदर वास्ती, मनीष बादल, हॉकी ओलंपियन सैयद जलालुद्दीन रिज़वी आदि सभी बधाई के पात्र हैं और कार्यक्रम के आयोजक भी बधाई के पात्र हैं।