मनुवादी और पूंजीवादी तत्व देश के सब से बड़े दुशमन: एम. डब्ल्यू अंसारी

Article : निवेश किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मौलिक भूमिका निभाता है, लेकिन जब यह निवेश पूंजीवादी व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है और पूंजीपति अपनी पूंजी का उपयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए करते हैं,

मनुवादी और पूंजीवादी तत्व देश के सब से बड़े दुशमन: एम. डब्ल्यू अंसारी

मनुवाद और पूंजीवाद देश के लिए सब से बड़ा खतरा:

 Article : निवेश किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में मौलिक भूमिका निभाता है, लेकिन जब यह निवेश पूंजीवादी व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है और पूंजीपति अपनी पूंजी का उपयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए करते हैं, तो यह पिछड़े(पसमांदा) समाज के लिए अभिशाप बन जाता है। आज़ादी के बाद हमारे देश में कई बदलाव हुए हैं जिनका फायदा पिछड़े वर्ग को हुआ है लेकिन वे आज तक पूंजीवादी व्यवस्था और फासीवादी तत्वों से छुटकारा नहीं पा सके हैं। ये फासीवादी शक्तियां और पूंजीपति किसी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं बल्कि ये अपने हितों के लिए देश के सभी राजनीतिक दलों से संबद्ध हैं और जो भी पार्टी सत्ता में होती है वो अपने हित साधने के लिए ये सारे हथकंडे अपनाती है।

पूंजीवादी मानसिकता और फासीवादी तत्वों के लोग न केवल राजनीतिक दलों में हैं बल्कि वे नौकरशाही, सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षण एवं गैर-शिक्षण वर्ग से भी जुड़े हुए हैं। जाहिर तौर पर ये बातें पिछड़े वर्गों को ऊपर लाने के लिए करते है, लेकिन पर्दे के पीछे इनकी सारी कोशिशें समाज के पिछड़े वर्गों के खिलाफ होती हैं। उनका प्रयास हाशिये पर पड़े वर्गों को और अधिक हाशिये पर धकेलना है। वे जानते हैं कि यदि पिछड़ा वर्ग शिक्षा से

सुसज्जित हो गया तो उनके विलासिता के दिन समाप्त हो जायेंगे । ये तत्व हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में पाए जाते हैं। मुस्लिम समाज में एक ही सफ़ में खड़े हो गए महमूद व अयाज़ की बातें तो जरूर होती है, लेकिन व्यवहार में हर कदम पर इसकी कमी नजर आती है। मुस्लिम समुदाय में जागीरदारी और पूंजीवादी व्यवस्था इतनी हावी है कि पढ़े-लिखे और उच्च पदस्थ मुसलमानों को पिछड़े मुसलमानों के साथ बैठने में भी शर्म आती है और इस विचारधारा का सबसे बड़ा नुकसान दलित मुस्लिम, ओबीसी मुस्लिम और समाज के पिछड़े मुस्लिमों को होता है।

देश का पसमांदा मुस्लिम तबका जब किसी मुस्लिम नौकरशाह या विधायक, सांसद को देखता है तो उसे उम्मीद होती है कि ज़रूरत पड़ने पर वह उनके काम आएगा लेकिन अफसोस, पढ़ा-लिखा मुस्लिम और मुस्लिम नेता इतना सेक्युलर हो जाता है कि उसे अपने समाज का काम करने से ही परहेज़ हो जाता है। सरकारें मुसलमानों को मंत्रालय में हिस्सेदारी इसलिए देती हैं ताकि मुस्लिम मंत्री उनकी समस्याओं का समाधान करें, लेकिन विपरीत परिणाम आने पर मुस्लिम समाज का हाशिये पर चला जाना कोई नई बात नहीं है। देश की आजादी के बाद यदि मुस्लिम नेतृत्व ने समुदाय की समस्याओं को गंभीरता से हल किया होता तो पिछड़े मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार की समस्या आज नासूर बनकर खड़ी न होती ।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मुसलमानों में जाति व्यवस्था पनपने के कारण पसमांदा मुसलमान खुद को हाशिये पर महसूस कर रहा है। मुसलमानों का अशरफिया तबका अरज़ाल के लोगों को साथ बेठाने के लिए तैयार नहीं है और जो पिछड़े मुसलमान शिक्षा प्राप्त कर किसी तरह आगे बढ़ गए हैं, उनमें भी पूंजीवादी व्यवस्था इतनी घर कर गयी है कि अब उनहे अपने ही समाज के लोगों के साथ बैठने में तकलीफ होने लगी है। ऐसी स्थिति में दलित मुस्लिम, ओबीसी मुस्लिम समुदाय के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे मुस्लिम अभिजात वर्ग और मुस्लिम पूंजीपतियों की ओर आशा भरी नज़रों से देखने के बजाय स्वयं सहायता प्रणाली' के तहत अपनी मदद आप करने के उसूल पर अमल करते हुए समाज के पसमांदा तबके के लिए काम करें.

इसके लिए सबसे बुनियादी हैं चार चीजें जिन्हें हम अंग्रेज़ी में फोर-टी और हिंदी में चार-त कह सकते हैं। अर्थात तालिम (शिक्षा) (उच्च से उच्च शिक्षा), तिजारत (व्यापार एवं रोजगार), तजवीज़ यानी सुझाव, योजना एवं सहयोग, यह संगठन से होगा और इन सभी से ही विकास संभव है। शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि शिक्षा से अज्ञानता का अंधकार दूर होगा और देश का भविष्य उज्ज्वल होगा। इसलिए सबसे ज़्यादा ध्यान उच्च शिक्षा पर देने की ज़रूरत है। संगठन का अर्थ है एकता, एक-दूसरे का सहयोग, यदि हम मिलजुलकर संगठित होकर कार्य करेंगे तो निश्चित ही परिणाम मिलेंगे। तीसरा है ( तजवीज़) योजना बनाना: यह

सच है कि यदि कोई भी बिना सोचे-समझे और बिना योजना के है तो वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता। जब ये सभी चीजें पूरी हो जाएंगी, तो 100 फिसद सफलता और प्रगति एक साथ मिलेगी। क्योंकि जब शिक्षा होगी तो अपनों के विकास के लिए संगठन बनाएंगे और जब संगठन होगा तो योजना बनाएंगे और जब शिक्षा के साथ संगठन होगा और संगठन के साथ योजना होगी तो विकास के मार्ग अपने आप खुल जाएंगे।

इसके अलावा हमारे सामने चार चुनौतियाँ हैं जिनका हमें डट कर सामना करना है। पहला है दलितों, एससी / एसटी का व्यवस्थित उन्मूलन ( खात्मा) यानी पिछड़े वर्गों का व्यवस्थित उन्मूलन। दूसरा है (Suppression ) सप्रेशन, जिसका अर्थ है इस वर्ग को कभी आगे न बढ़ने देना, हमेशा दबाकर रखना। तीसरा है भेदभाव (Discrimmation) पिछड़े वर्ग के साथ हर क्षेत्र में भेदभाव किया जा रहा है और चौथा है (Deprivation)अभाव, यह भी एक सोची समझी साजिश के तहत पिछड़ा समाज को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है। अब इन चुनौतियों का सामना कैसे करें और इसकी प्रक्रिया क्या हो? इसलिए यह याद रखना चाहिए कि इन चारों 2S/2D का मुकाबला चार 'त' से करना होगा, तभी इस देश में दलित मुस्लिम, दलित पिछड़े SC/ST, ओबीसी और अन्य पिछड़े मुसलमान कामयाब होंगे।

साथ ही अपना नेतृत्व भी तैयार करना होगा। समाज के लोगों में राजनीतिक चेतना जगानी होगी। जनसंख्या के अनुपात में स्थानीय निकायों के चुनाव के साथ-साथ विधानसभा और संसद चुनाव में भी राजनीतिक दलों से टिकट की मांग की जानी चाहिए। जो राजनीतिक दल राजनीति में भागीदारी या भागीदारी के सिद्धांत पर काम करने को तैयार है, उसे दलित मुसलमानों, ओबीसी मुसलमानों और पिछड़े मुसलमानों को राजनीतिक क्षेत्र में भाग लेने की अनुमति देनी चाहिए और जो राजनीतिक दल भागीदारी से परहेज करें उनका राजनीतिक बहिष्कार करने के साथ-साथ आगामी चुनाव में उन्हें मजा चखाया जाना चाहिए और यह कार्य राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना से ही संभव है। जब तक राजनीतिक दल आपकी शैक्षिक एवं राजनीतिक शक्ति से नहीं डरेंगे, तब तक वे आपको सत्ता में भागीदार नहीं बनाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि दलित मुस्लिम, दलित ओबीसी और पिछड़े मुस्लिम अपना साझा एजेंडा तैयार करें और एकजुट होकर अपने साझा एजेंडे पर काम करें।