गांधी जी के यौमे पैदाइश पर किया गया मोहसिने गांधी को फरामोश, आखिर कब मिलेगा गांधी जी की जान बचाने वाले को इंसाफ : एम. डब्ल्यू. अंसारी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता। जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था और अंग्रेजों की क्रूरता की कहानियां हर जगह सुनने को मिल रही थीं, ऐसे समय में जब दूसरे मुजाहिदीन देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनमें महात्मा गांधी भी प्रमुख थे।

गांधी जी के यौमे पैदाइश पर किया गया मोहसिने गांधी को फरामोश, आखिर कब मिलेगा गांधी जी की जान बचाने वाले को इंसाफ : एम. डब्ल्यू. अंसारी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता। जब भारत अंग्रेज़ों का गुलाम था और अंग्रेजों की क्रूरता की कहानियां हर जगह सुनने को मिल रही थीं, ऐसे समय में जब दूसरे मुजाहिदीन देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे। उनमें महात्मा गांधी भी प्रमुख थे। देश को आज़ाद कराने के लिए आपके द्वारा की गई कड़ी मेहनत और प्रयासों के लिए आपको हमेशा याद किया जाएगा। हर साल 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी के जन्मदिन पर आपको पूरे देश में याद किया जाता है। पाठ्यक्रम में कई पाठ आपके जीवन पर आधारित हैं। साथ ही, 2 अक्टूबर को आपके जन्मदिन पर पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश रहता है।

जहां एक तरफ महात्मा गांधी का व्यक्तित्व परिचय का मोहताज नही है वैसे ही लोगों को आपके हत्यारे का नाम भी याद है। नाथूराम गोडसे का नाम तो हर कोई जानता है, लेकिन सितम ये है कि मोहसिने गांधी और मुहाफिज़े गांधी को आज कोई नहीं जानता।  हालांकि मारने वाले से बचाने वाला हमेशा बड़ा होता है और जो अपनी जान और धन का बलिदान देकर किसी की जान बचाता है वह हमेशा के लिए अमर हो जाता है और ज़ाहिर तौर पर ऐसे सभी मौकों पर जो बड़ा होता है उसे याद किया जाएगा, लेकिन हमारे देश भारत में मामला कुछ अलग ही नहीं बल्कि बरअक्स है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आज पूरी दुनिया जानती है और उनका हत्यारा भी उतना ही प्रसिद्ध हैं जितने कि स्वयं महात्मा गांधी। उनके हत्यारे का नाम भी पूरी दुनिया जानती है। लेकिन जिस शख्स ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपनी जान जोखिम में डालकर गांधीजी की जान बचाई, आज उसका नाम तक कोई नहीं जानता। आज वह शख्सियत गुमनाम हो गई है। वह महान शख्सियत है बख्त मियां अंसारी (उर्फ बतख मियां अंसारी)

इतिहास की किताबों में लिखा है कि कैसे बतख मियां अंसारी ने गांधीजी की जान बचाई, ब्रिटिश अधिकारी ने गांधीजी को रात के खाने पर आमंत्रित किया और अपने बावर्ची बतख मियां को गांधीजी को जहरीला दूध देने के लिए कहा, लेकिन बतख मियां ने उनकी साजिश का पर्दाफाश कर दिया और इस तरह गांधीजी की जान बचा ली।  बतख मियां अंसारी को अंग्रेज़ों के हाथों क्रूर हिंसा का सामना करना पड़ा। उन्हें न केवल उनकी ज़मीन से बेदखल किया गया बल्कि जेल की कोठरी में डाल दिया गया और जेल में उनके साथ वह सब कुछ हुआ जो उस समय के सभी मुजाहिदीने आज़ादी के साथ होता था।

बतख़ मियां के पोते चिराग अंसारी व कलाम अंसारी सहित परिवार के अन्य सदस्यों का कहना है कि हमारे दादा ने गांधीजी को तो बचा लिया लेकिन बदले में उन्हें बहुत कष्ट 

सहना पड़ा। उन्हें देशभक्ति की भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार अपने ही राष्ट्रपति के आदेश को भूल गई है और बतखमियां अंसारी के परिवार के लोग दरबदर में ठोकरें खा रहे हैं और सभी प्रकार की विभीषिकाओं से वंचित हैं। कई सरकारें आईं और गईं, सभी ने वादा किया कि न्याय मिलेगा, लेकिन आज तक न तो बतखमियां अंसारी और न ही उनके परिवार वालों को न्याय मिला।

पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर आज तक कितने राष्ट्रपति हुए? और इसी तरह, कई राष्ट्रीय सरकारें आईं और प्रांतीय, कांग्रेस से लेकर लालू यादव जी की सरकार, नीतीश जी की सरकार, सब ने वादे किए और फिर वादा खि़लाफी की। न्याय को लेकर कई बार सवाल किये गये, लेकिन आज तक न्याय नहीं मिला।

यह भी उल्लेखनीय है कि स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बतखमियां अंसारी से खुश होकर उन के परिवार को 35 बीघा जमीन देने का वादा किया था जो आज तक उनके परिवार को नहीं मिली है। क्योंकि वह एक गरीब किसान थे। अब उनका परिवार खुशहाल स्थिति में नहीं है। अगर यही स्थिति किसी अमीर, नवाब या किसी प्रभावशाली व्यक्ति के परिवार की होती तो अब तक उन्हें वह ज़मीन मिल गई होती जिसका वादा राष्ट्रपति ने किया था।

आज राष्ट्रीय सरकार हो या प्रान्तीय सरकार, बे तव्वजोहि की क्या वजह है? यहां तक कि उनके नाम पर बनी लाइब्रेरी, उनकी समाधि, उनके नाम पर बना गेट आदि सभ तव्वजोहि का शिकार हैं। आज भाजपा की राष्ट्रीय सरकार है जो पसमांदा के कल्याण की बात कर रही है। उनके साथ हुए अन्याय की बात कर रही हैं और सूबे में नीतीश जी और तेजस्वी जी की मिली-जुली सरकार है और हाल ही में स्थानीय विधायक ने विधानसभा में इसकी बात भी उठायी थी। इस के बावजूद आज तक इंसाफ नहीं मिला? सवाल यह है कि न्याय की किरण कब जगेगी? उनके नाम पर दी गइ ज़मीन कहां हैं? इससे किसे फायदा हो रहा है? यदि बतख मियां न होते तो क्या गांधीजी आज देश की आजादी के लिए अपना समर्थन दे पाते? सच तो यह है कि देश की आजादी में बतख मियां अंसारी का योगदान गांधीजी जितना ही महत्वपूर्ण है ।

2 अक्टूबर गांधी जयंती(जन्म दिवस) के अवसर पर हम एक बार फिर बतखमियां अंसारी को याद करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। हम उनके द्वारा किए गए ऐतिहासिक कारनामे को याद करते हैं। हम युवाओं से अनुरोध करते हैं कि वे ऐसे गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पढ़ें जिन्होंने कुछ न होते हुए भी देश के लिए सब कुछ किया। अपने अंदर ईमानदारी और साहस पैदा करें। साथ ही, हम एक बार फिर भारत सरकार को राष्ट्रपति द्वारा किए गए अपने वादे की याद दिलाते हैं। हमें उम्मीद है कि इस बार गांधीजी के जन्मदिन पर बतख मियां अंसारी के परिवार के लिए न्याय की किरन जगेगी। सरकार अपना वादा पूरा करेगी। नहीं तो हम सबको याद रखना होगा कि अगर ऐसे मुजाहिदीन जिन्होंने अपनी जान की भी परवाह नहीं की उन्हें न्याय नहीं मिला तो आने वाली पीढ़ी जो देश के लिए कुछ करने का जज़्बा रखती है। उनका मनोबल टूट जाएगा। इस अन्याय के कारण वे ईमानदारी की जगह बेईमानी का रास्ता चुनेंगे और इन सबके लिए सरकार खुद ज़िम्मेदार होगी। इसलिए पीढ़ियों को बचाने के लिए सरकार को बतख मियां अंसारी और उनके जैसे मुजाहिदीनों से किए गए वादों को पुरा करना चाहिए। ताकि उनके परिवार ठोकरें खाने से बच जाए।