विश्व उर्दू दिवस के अवसर पर उर्दू को बचाने और बढ़ाने का संकल्प लेंः एम. डब्ल्यू. अंसारी

तराना-ए-हिन्द के खालिक़ अल्लामा इकबाल का जन्म 9 नवम्बर 1877 को सियालकोट में हुआ था और 12 अप्रैल 1938 को लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई। शायरे मशरिक अल्लामा इकबाल के जन्मदिन को उर्दू जगत में उर्दू दिवस के रूप में मनाया जाता है।

विश्व उर्दू दिवस के अवसर पर उर्दू को बचाने और बढ़ाने का संकल्प लेंः एम. डब्ल्यू. अंसारी

तराना-ए-हिन्द के खालिक़ अल्लामा इकबाल का जन्म 9 नवम्बर 1877 को सियालकोट में हुआ था और 12 अप्रैल 1938 को लाहौर में उनकी मृत्यु हो गई। शायरे मशरिक अल्लामा इकबाल के जन्मदिन को उर्दू जगत में उर्दू दिवस के रूप में मनाया जाता है। इकबाल उन शायरों में से एक हैं जिन्होंने अपने विचारोत्तेजक कार्यों से न केवल उर्दू को विश्व स्तर पर पहुंचाया, बल्कि उर्दू भाषा और साहित्य को भी अपनी बुलंद कल्पना से वह स्थान दिया कि उर्दू की उत्कृष्ट कृति दुनिया की अन्य प्रमुख भाषाओं के बराबर है।यही कारण है कि भारत की बेटी यूएनओ की आधिकारिक भाषा बन गई है।

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इकबाल इंसानियत के शायर थे। उनके लेखन को केवल उर्दू दायरे या मुस्लिम राष्ट्र तक सीमित देखना अनुचित होगा। इकबाल ने अपनी शायरी में अज्ञानता को मनुष्य की मृत्यु के रूप में परिभाषित किया है। वह हर कदम पर मनुष्य की इच्छा शक्ति को जागृत करने, शिक्षा प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बनाने की सलाह देते हैं। इतना ही नहीं, इकबाल की शायरी का अध्ययन दुनिया की समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान करता है। इकबाल ने एक सदी पहले एशियाई देशों की वर्तमान स्थितियों की ओर इशारा किया था।

अगर दुनिया इकबाल की इसी चिंता को धुरी बनाकर काम करे तो न केवल फिलिस्तीन मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सकता है, बल्कि इस दृष्टिकोण से काम करके विश्व शांति भी स्थापित की जा सकती है 

अल्लामा इकबाल का भोपाल से भी गहरा नाता रहा है। इकबाल अपने जीवन में चार बार भोपाल आए। इस दौरान वह राहत मंज़िल, रियाज़ मंजिल और शीश महल में रहे। दिलचस्प बात यह है कि इकबाल दुनिया के अलग-अलग देशों और शहरों में भी गए। उन्होंने वहां गजलें और नज़्में भी लिखीं, लेकिन उन्होंने कौन सी गज़ल या नज़्म किस शहर में लिखी, इसका कोई ज़िक्र नहीं है। लेकिन भोपाल के लिए गौरव की बात यह है कि उन्होंने भोपाल प्रवास के दौरान चैदह नज़्में लिखीं और इन नज़्मों के नीचे न सिर्फ तारीख बल्कि उस जगह और महल का नाम भी लिखा था जहां इकबाल रहे। इकबाल द्वारा भोपाल में लिखी गई चैदह नज़्मों को निगाह नाम से इकबाल मरकज़ द्वारा पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया है। भोपाल की इकबाल लाइब्रेरी संयुक्त भारत में इकबाल के नाम पर स्थापित पहली लाइब्रेरी है। इकबालीयात को बढ़ावा देने के लिए इकबाल मरकज़, अखिल भारतीय इकबाल पुरस्कार, इकबाल मैदान की स्थापना भोपाल के लोगों के इकबाल के प्रति विशेष प्रेम का भी प्रमाण है। 

उर्दू दिवस के मौके पर हम सभी को न केवल इकबाल मैदान की जर्जर हालत को दूर करने के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर इकबालीयात को बढ़ावा देने के लिए भी नये सिरे से काम करने की ज़रूरत है।