50% आरक्षण के बावजूद नहीं मिली जिला पंचायत अध्यक्ष की 1 भी सीट -नेताम, पार्षद द्वारा भेदभावपूर्ण कार्य कराये जाने को लेकर उप मुख्यमंत्री लिखा पत्र

Despite 50% reservation, not even one seat of Zila Panchayat President was received - Netam, wrote a letter to the Deputy Chief Minister regarding discriminatory work done by the councilor

50% आरक्षण के बावजूद नहीं मिली जिला पंचायत अध्यक्ष की 1 भी सीट -नेताम, पार्षद द्वारा भेदभावपूर्ण कार्य कराये जाने को लेकर उप मुख्यमंत्री लिखा पत्र

पार्षद द्वारा भेदभावपूर्ण कार्य कराये जाने को लेकर उप मुख्यमंत्री लिखा पत्र

रायपुर : कांग्रेस नेता संदीप तिवारी ने उप मुख्यमंत्री को पत्र के जरिए अधिकारियों के खिलाफ शिकायत की गई है कि वर्तमान पार्षद का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उनके दबाव में अनुचित काम कर रहे हैं - 
कांग्रेस नेता संदीप तिवारी ने पं. सुन्दर लाल शर्मा वार्ड क्र.42 अन्तर्गत हो रहे सड़क निर्माण में वार्ड पार्षद मृत्युंजय दुबे के ऊपर मनमानी का आरोप लगाया और इस बारे में उप मुख्यमंत्री अरुण साव को एक पत्र भी भेजा है.
संदीप तिवारी ने पत्र में पं. सुन्दर लाल शर्मा वार्ड के प्रगति चौक क्षेत्र, पुराना रायपुर कान्वेंट स्कूल के पास, नेशनल कान्वेंट स्कूल के पास, मदर्स प्राईड स्कूल के पीछे, फूटबॉल हाउस का क्षेत्र, ओम सोसायटी, कारगिल चौक का क्षेत्र, चन्द्रशेखर नगर, मैत्री नगर और अश्वनी नगर क्षेत्र के अंतर्गत भी सड़कों का काम कराये जाने पर कहा है कि वहाँ पर इन क्षेत्रों की कई गलियों को छोड़ा जा रहा है.
संदीप तिवारी ने बताया कि पार्षद द्वारा कांग्रेस के नेताओं और जो उनके खिलाफ रहते हैं या जिनकी उनसे पटती नहीं है. उनके घरों वाले लाईनों को जान-बूझकर बनने नहीं दिया जा रहा है.
संदीप तिवारी ने उप मुख्यमंत्री को पत्र के जरिए अधिकारियों के खिलाफ शिकायत किया कि वर्तमान पार्षद का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी उनके दबाव में अनुचित काम कर रहे हैं और उन्होंने वर्तमान पार्षद मृत्युंजय दुबे की भी शिकायत किया कि ऐसे जनप्रतिनिधियों को दोबारा पार्टी सोच-समझकर टिकिट दे. क्योंकि उनके इस रवैये से पार्टी पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है. और साथ ही साथ जनता से भी आव्हान किया कि ऐसे लोग दोबारा कहीं से भी चुनाव लड़ें इन्हें वोट न करने की अपील की है.
तिवारी ने कहा कि वर्तमान पार्षद चार बार से निर्वाचित हो चुके हैं. लेकिन ऐसी छोटी और ओछी मानसिकता शायद ही रायपुर शहर का कोई पार्षद या फिर कोई भी जनप्रतिनिधि करता होगा. चाहे वह किसी भी दल से हो पार्षद की शिकायत लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल एवं विधायक सुनील सोनी से भी की जाएगी. तिवारी ने कहा कि पार्षद के इस रवैये से सांसद और विधायक भी मौन हैं.
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50% आरक्षण के बावजूद नहीं मिली जिला पंचायत अध्यक्ष की 1 भी सीट -नेताम

गरियाबंद/मैनपुर : प्रदेश अध्यक्ष के आह्वान पर पंचायती चुनाव में आरक्षण के श्रेणी में बहुसंख्यक पिछड़ा वर्ग को शामिल नहीं किया जाने को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में जानता तक यह बात पहुचने के लिए अपने पदाधिकारियों को धरना प्रदर्शन के जरिए जनता के बीच जाने व त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव 2025 में राज्य सरकार द्वारा लागु की गई नई आरक्षण व्यवस्था के तहत वर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए हुए आरक्षण में एक भी पद अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित नही है. जबकि प्रदेश की आधी आबादी अन्य पिछड़ा वर्ग की है. इस बहुसंख्यक आबादी के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार नाइंसाफी कर रही है. आरक्षण प्रावधानों में किए गए दुर्भावनापूर्वक संशोधन के चलते त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव में ओ.बी.सी. आरक्षण खत्म हो गया है.
जिला पंचायत उपाध्यक्ष संजय नेताम ने कहा कि पहले प्रदेश में 16 जिला पंचायत और 85 जनपदों में 25 फीसदी सीटें OBC के लिए आरक्षित होती थी. लेकिन अब अनुसूचित क्षेत्रों में ओबीसी का आरक्षण लगभग खत्म हो गया है. नेताम ने कहा कि प्रदेश की भाजपा सरकार ने साजिश कर OBC आरक्षण में कटौती की है. जिला और जनपद पंचायतों में OBC का आरक्षण ही खत्म कर दिया गया है.
छत्तीसगढ़ में 50 फीसदी OBC आरक्षण के बावजूद जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए एक भी पद OBC को नहीं मिला. प्रदेश में नगरीय निकायों के बाद त्रि-स्तरीय पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण तय किए गए हैं. रायपुर जिला पंचायत अध्यक्ष का पद इस बार अनारक्षित हो गया है. वहीं, धमतरी, महासमुंद, कबीरधाम, मुंगेली में सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला पंचायत अध्यक्ष पदों का आरक्षण भी अनारक्षित हुआ है. प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष की एक भी सीट OBC आरक्षित नहीं हुई है.
प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के साथ हो रहे घोर अन्याय को गंभीरता से लेते हुए छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के आह्वान एक-दिवसीय जिलास्तरीय धरना / प्रदर्शन किये जाने का फैसला लिया है. कांग्रेस इस मौके पर जिला अध्यक्ष सहित बड़ी तादाद में कांग्रेसी शामिल हुए.
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हाई कोर्ट में याचिका पेश, आरक्षण रोस्टर निरस्त करने की मांग

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण से जुड़े मुद्दे पर एक बार फिर विवाद खड़ा हो गया है. राज्य सरकार द्वारा जारी अध्यादेश और उससे जुड़े प्रावधानों को लेकर नरेश राजवाड़े, उपाध्यक्ष जिला पंचायत सूरजपुर एवं प्रदेश महासचिव, ओबीसी महासभा ने बिलासपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका में सरकार के कदमों को अवैधानिक करार देते हुए त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के आरक्षण रोस्टर को निरस्त करने की मांग की गई है.
पंचायत राज अधिनियम में संशोधन:
छत्तीसगढ़ सरकार ने छत्तीसगढ़ पंचायत राज (संशोधन) अध्यादेश, 2024 को 3 दिसंबर 2024 को लागू किया. इस अध्यादेश के तहत, पंचायत राज अधिनियम की धारा 129(डी) की उपधारा (03) को हटा दिया गया. यह संशोधन ओबीसी वर्ग के आरक्षण को प्रभावित करता है.
अध्यादेश की वैधता पर सवाल
भारत के संविधान के अनुच्छेद 213 के अनुसार, कोई भी अध्यादेश अधिकतम छह माह तक ही प्रभावी रह सकता है। इस अवधि के भीतर उसे विधानसभा में पारित कर अधिनियम का रूप दिया जाना जरुरी है. लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार ने 16 से 20 जनवरी 2024 तक आयोजित विधानसभा सत्र में इस अध्यादेश को पारित नहीं कराया और केवल इसे पटल पर रखा. इसकी वजह से कारण यह अध्यादेश अब विधिशून्य हो चुका है.
त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों का आरक्षण रोस्टर:
संशोधित अध्यादेश के आधार पर 24 दिसंबर 2024 को पंचायत निर्वाचन नियम (5) में संशोधन किया गया. इसके तहत त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण रोस्टर तैयार किया गया. याचिका में इस संशोधन को भी अवैधानिक ठहराया गया है. क्योंकि यह एक निष्क्रिय अध्यादेश पर आधारित है.
याचिका में कहा गया है कि:
वर्तमान आरक्षण रोस्टर और संशोधित पंचायत निर्वाचन नियम (5) को तत्काल निरस्त किया जाए.
पंचायत राज अधिनियम के पूर्व प्रावधानों के तहत आरक्षण रोस्टर को फिर से तैयार किया जाए.
आगामी पंचायत चुनाव वैधानिक रूप से आयोजित किए जाएं.
अध्यादेश को कानूनी मान्यता देने के लिए संविधान के अनुच्छेद 213 के तहत उसे समय पर पारित करना जरुरी था. छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इस प्रावधान की अनदेखी से न सिर्फ कानून का उल्लंघन हुआ है. बल्कि पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.
ओबीसी आरक्षण का मुद्दा छत्तीसगढ़ में हमेशा संवेदनशील रहा है. सरकार की यह चूक ओबीसी वर्ग के लोगों में असंतोष बढ़ा सकती है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए जारी आरक्षण रोस्टर को अवैधानिक करार देने की मांग से यह विवाद और गहरा सकता है.
यह मामला न सिर्फ संवैधानिक प्रावधानों के पालन का है. बल्कि सामाजिक न्याय और ओबीसी वर्ग के अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है. छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में दायर याचिका इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करती है. अब यह देखना होगा कि उच्च न्यायालय क्या फैसला करता है. और इससे ओबीसी आरक्षण और पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर क्या असर पड़ेगा.
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