हर साल 61 हजार करोड़ का होगा घाटा, जानिए ट्रंप के टैरिफ से और क्या-क्या नुकसान होगा, पाकिस्तान पर डोनाल्ड ट्रंप की नीति क्या भारत के लिए झटका?
There will be a loss of 61 thousand crores every year, know what other losses will be caused by Trump's tariff, is Donald Trump's policy on Pakistan a setback for India?

हर साल 61 हजार करोड़ का होगा घाटा, जानिए ट्रंप के टैरिफ से और क्या-क्या नुकसान होगा
अमेरिका 2 अप्रैल से ‘आंख के बदले आंख’ की तर्ज पर भारत पर पारस्परिक टैरिफ लगाएगा. इसका मतलब यह है कि भारत अमेरिकी कंपनियों से आने वाले सामान पर जो भी टैरिफ लगाएगा. अमेरिका भी भारतीय कंपनियों द्वारा अमेरिका जाने वाले सामान पर वही टैरिफ लगाएगा.
यह घोषणा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय समय के अनुसार 5 मार्च की सुबह अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र में की. उन्होंने रिकॉर्ड 1 घंटा 44 मिनट का भाषण दिया.
टैरिफ क्या है?
टैरिफ दूसरे देश से आने वाले सामान पर लगाया जाने वाला टैक्स है. विदेशी सामान देश में लाने वाली कंपनियां सरकार को यह टैक्स देती हैं. इसे एक उदाहरण से समझें…
टेस्ला का साइबर ट्रक अमेरिकी बाजार में करीब 90 लाख रुपये में बिकता है.
अगर टैरिफ 100 फीसदी है तो भारत में इसकी कीमत करीब 2 करोड़ रुपये होगी.
पारस्परिक टैरिफ का क्या मतलब है?
पारस्परिक का मतलब है – तराजू के दोनों पलड़ों को बराबर करना. यानी अगर एक पलड़े पर 1 किलो वजन है, तो दूसरे पलड़े पर एक किलो वजन रखकर उसे बराबर कर दें.
ट्रंप इसे ही बढ़ाने की बात कर रहे हैं. यानी अगर भारत कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर 100% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी ऐसे उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाएगा.
ट्रंप ऐसा क्यों कर रहे हैं?
टैरिफ ट्रंप की आर्थिक योजनाओं का हिस्सा हैं. उनका कहना है कि टैरिफ से अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार बढ़ेगा. टैक्स रेवेन्यू बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था बढ़ेगी.
2024 में अमेरिका में 40% से ज्यादा आयात चीन, मैक्सिको और कनाडा से आने वाले सामानों का था. कम टैरिफ की वजह से अमेरिका को व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है.
भारत पर क्या असर होगा? (Side Effects of American Tariff)
महंगा हो सकता है निर्यात: पारस्परिक टैरिफ से अमेरिकी बाजार में खाद्य उत्पाद, कपड़ा, परिधान, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, रत्न और आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल जैसे भारतीय निर्यात महंगे हो सकते हैं. इससे ये सामान वहां प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगे.
कम होगा व्यापार अधिशेष: अभी अमेरिका भारतीय सामानों पर कम टैरिफ लगाता है, जिससे भारत को व्यापार अधिशेष का लाभ मिलता है. टैरिफ बढ़ाने से भारत को व्यापार अधिशेष से मिलने वाला लाभ कम हो सकता है.
बढ़ सकता है आयात: अगर भारत अमेरिका के ऊंचे टैरिफ से बचने के लिए अमेरिकी सामानों पर टैरिफ कम करता है, तो भारतीय बाजार में अमेरिकी सामान सस्ते हो जाएंगे. इससे इन सामानों का आयात बढ़ सकता है.
कमजोर हो सकता है रुपया: ज्यादा आयात का मतलब है डॉलर की ज्यादा मांग. इससे रुपया कमजोर होगा और भारत का आयात बिल बढ़ेगा. इसका मतलब है कि अब अमेरिका से सामान खरीदने के लिए ज्यादा पैसे चुकाने होंगे.
बढ़ेगा विदेशी निवेश: अगर भारत टैरिफ कम नहीं करता है, तो अमेरिकी कंपनियां ऊंचे टैरिफ से बचने के लिए भारत में ही अपने उत्पादन पर ध्यान दे सकती हैं, इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई बढ़ेगा.
7 अरब डॉलर का नुकसान: टैरिफ ने ऑटो से लेकर कृषि तक भारत के निर्यात क्षेत्र में चिंता बढ़ा दी है. व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने से भारत को हर साल करीब 7 बिलियन डॉलर (61 हजार करोड़ रुपए) का नुकसान हो सकता है.
भारत का कौन सा सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित होगा? (Side Effects of American Tariff)
अमेरिका ने 2024 में भारत को 42 बिलियन डॉलर (करीब 3.6 लाख करोड़ रुपए) का सामान बेचा है. इसमें भारत सरकार ने लकड़ी के उत्पादों और मशीनरी पर 7%, फुटवियर और ट्रांसपोर्ट उपकरणों पर 15% से 20% और खाद्य उत्पादों पर 68% तक टैरिफ लगाया है.
कृषि उत्पादों पर अमेरिका का टैरिफ 5% है, जबकि भारत का 39% है. अगर अमेरिका कृषि उत्पादों पर पारस्परिक टैरिफ लगाने का फैसला करता है, तो भारत के कृषि और खाद्य निर्यात पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. यहां टैरिफ का अंतर सबसे ज्यादा है. लेकिन व्यापार की मात्रा कम है.
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पाकिस्तान पर डोनाल्ड ट्रंप की नीति क्या भारत के लिए झटका?
26 अगस्त 2021 में जब अमेरिकी फौज अफ़ग़ानिस्तान से निकल रही थी तब काबुल एयरपोर्ट के बाहर एक आत्मघाती हमला हुआ था. जिसमें 13 अमेरिकी सैनिक मारे गए थे और 100 से ज़्यादा अफ़ग़ान नागरिकों की जान गई थी.
अमेरिका का कहना है कि इस हमले के मास्टरमाइंड मोहम्मद शरीफ़ुल्लाह को पाकिस्तान की मदद से पकड़ लिया गया है.
शरीफुल्लाह की गिरफ़्तारी को लेकर ही मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान की सरकार को धन्यवाद कहा था.
अमेरिकी की ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के निदेशक जॉन रैटक्लिफ ने बुधवार को फॉक्स बिज़नेस के साथ इंटरव्यू में कहा कि शरीफ़ुल्लाह मंगलवार की रात वॉशिंगटन डीसी आ गए हैं और अभी अमेरिकी हिरासत में हैं. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल वॉल्ट्ज ने फॉक्स न्यूज़ से कहा कि शरीफ़ुल्लाह ने काबुल धमाके में अपना गुनाह स्वीकार कर लिया है.
सीबीएस न्यूज़ से अमेरिका के एक सीनियर रक्षा अधिकारी ने कहा कि शरीफ़ुल्लाह को 10 दिन पहले आईएसआई और सीआईए के साझा अभियान में पकड़ा गया था.
ट्रंप ने पाकिस्तान को जिस तरह से धन्यवाद कहा, उससे एक संदेश गया है कि पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई में शामिल है और इसे हराने में मदद कर रहा है.
ट्रंप के इस धन्यवाद के बाद भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने एक्स पर लिखा, ''ट्रंप ने अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए एक अफ़ग़ान आतंकवादी को पकड़ने और अमेरिका को सौंपने के लिए पाकिस्तान की प्रशंसा की है. अमेरिका पर हमें यह दबाव बनाकर रखना चाहिए कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में पाकिस्तान के अहम योगदान को याद रखा जाए.''
पाकिस्तान के मीडिया में ट्रंप के शुक्रिया की काफ़ी चर्चा हो रही है. समा टीवी पर चर्चा के दौरान वरिष्ठ पत्रकार नदीम मलिक ने कहा, ''अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद से दोनों देशों के बीच एक अविश्वास का माहौल था. लेकिन ट्रंप ने जिस तरह से पाकिस्तान की प्रशंसा की है, उससे साफ़ हो गया है कि दोनों देश एक बार फिर से सहयोग की राह पर बढ़ने के लिए तैयार हैं.''
ट्रंप के धन्यवाद देते ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने एक्स पर एक लंबी पोस्ट लिखी. इस पोस्ट में शहबाज़ शरीफ़ ने ट्रंप को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि उन्होंने पाकिस्तान की भूमिका को स्वीकार किया है.
पिछले महीने जब पीएम मोदी ने अमेरिका का दौरा किया था तो दोनों देशों की ओर से एक साझा बयान जारी किया गया था. इस बयान में पाकिस्तान का नाम लेकर कहा गया था कि वह मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमले की साज़िश रचने वालों को न्याय के कटघरे में लाए.
भारत और अमेरिका ने अपने साझे बयान में कहा था, ''दोनों नेताओं ने वैश्विक आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई और दुनिया के हर कोने से आतंकवाद के सुरक्षित पनाहगाह को ख़त्म करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है. दोनों देशों ने आतंकवादी समूह अल-क़ायदा, आईएसआईएस, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैय्यबा के ख़िलाफ़ सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जताई है.''
अमेरिका और भारत के इस साझा बयान की पाकिस्तान में काफ़ी चर्चा हुई थी. पाकिस्तान में कहा जा रहा था कि भारत साझा बयान में पाकिस्तान का नाम शामिल करवाने में कामयाब रहा. इसे पाकिस्तान के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा था.
एक महीना पहले जो अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद के मामले में घेर रहा था, वही अमेरिका अब पाकिस्तान को आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के लिए धन्यवाद दे रहा है. अमेरिका से पाकिस्तान को धन्यवाद कहना भारत के लिए क्या संदेश है?
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में अंतरराष्ट्रीय संबंध और अमेरिकी विदेश नीति के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर मनन द्विवेदी कहते हैं कि यही अमेरिका की दोहरी नीति है.
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ट्रंप की रणनीति क्या है?
इससे पहले, अमेरिका ने पाकिस्तान को 3.97 करोड़ डॉलर उसके एफ-16 प्रोग्राम को मेंटेन करने के लिए देने की घोषणा की थी. जब ट्रंप ने 90 दिनों के लिए सभी तरह की विदेशी मदद रोकने की घोषणा की थी, तब पाकिस्तान के लिए ट्रंप ने यह नरमी दिखाई. ट्रंप ने इसी दिन भारत की चार कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. अमेरिका कहना था कि भारत की इन चार कंपनियों से ईरान को मदद मिल रही थी.
एक ही दिन में पाकिस्तान को 40 करोड़ डॉलर की मदद और भारत की चार कंपनियों पर प्रतिबंध के मायने क्या हैं? अमेरिका के डेलावेयर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध के प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक टिप्पणी में कहा है, ''पाकिस्तान ने अमेरिका के एफ़-16 का इस्तेमाल 2019 में इंडिया के ख़िलाफ़ किया था जबकि पाकिस्तान को यह लड़ाकू विमान अमेरिका ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में इस्तेमाल के लिए दिया था. इसके बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठाया था.''
मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, ''पिछले तीन सालों में पाकिस्तान को अमेरिका से एक अरब डॉलर की मदद मिली है. ट्रंप प्रशासन में भारत से जुड़े कई लोग हैं. ऐसे में कहा जा रहा था कि ट्रंप की नीति भारत के पक्ष में होगी. लेकिन विदेश नीति ऐसे नहीं चलती है. ट्रंप ने जो शुरुआती संदेश दिए हैं, उनमें साफ़ है कि भारत को लेकर कहीं से भी उदारता नहीं दिखा रहे हैं. यहां तक कि ट्रंप ईरान में भारत के चाबहार पोर्ट को भी रोकने की बात कह चुके हैं.'
आख़िर अमेरिका पाकिस्तान को लेकर नरमी क्यों दिखा रहा है?
प्रोफ़ेसर मुक़्तदर ख़ान कहते हैं, ''अमेरिका अब भी पाकिस्तान को कई मोर्चों पर मददगार के रूप में देखता है. अमेरिका नहीं चाहता है कि पाकिस्तान पूरी तरह से चीन के पाले में चला जाए. जैसे भारत चीन से काउंटर करने के मामले में अमेरिका से फ़ायदा उठा रहा है, वैसे ही पाकिस्तान भी कर रहा है. बाइडन ने जब पाकिस्तान को मदद दी थी तो भारत ने कड़ी आपत्ति जताई थी, लेकिन ट्रंप के हर फ़ैसले पर भारत चुप है, भले उसके ख़िलाफ़ फ़ैसले लिए जा रहे हैं. पाकिस्तान के पास एफ-16 रहना भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरा है. अभी भारत की वायु सेना बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है.''
पाकिस्तान शुरू से ही अमेरिकी खेमे में था. शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान अमेरिका के साथ था, जबकि भारत ने गुटनिरपेक्षता की राह चुनी थी. गुटनिरपेक्ष नीति के बावजूद भारत सोवियत संघ के क़रीब था. पाकिस्तान के साथ भारत की जंग में भी अमेरिका का रुख़ भारत के ख़िलाफ़ रहा है.
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