धूमधाम के साथ मनाया गया मकर संक्रांति महापर्व, पोंगल और अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव, पतंगबाजी का लिया आनंद, पवित्र नदियों में स्नान और दान
Makar Sankranti, Pongal and International Kite Festival were celebrated with great pomp; people enjoyed kite flying, bathing in holy rivers and making donations

रायपुर : मकर संक्रांति के पावन पर्व पर देशभर में हर्ष और उल्लास का माहौल रहा. सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होने का यह पर्व समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. इस अवसर पर गंगा सहित देश की विभिन्न नदियों में लाखों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई.
मकर संक्रांति पर उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, वाराणसी, हरिद्वार और बिहार के गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी गई. सुबह से ही लोग पवित्र नदियों में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया. पुण्य प्राप्ति के लिए दान-पुण्य का महत्व होने के कारण लोगों ने तिल, गुड़, कंबल और अन्न का दान किया.
इस दिन देश के कई हिस्सों में पतंगबाजी का भी आयोजन हुआ. गुजरात के अहमदाबाद और राजस्थान के जयपुर में आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से सजा हुआ नजर आया. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक ने पतंगबाजी का आनंद लिया. “काइ पो चे” और “लूट गई” जैसे नारे पूरे दिन गूंजते रहे.
मकर संक्रांति पर घर-घर में तिल-गुड़ के लड्डू, खिचड़ी, पूड़ी और अन्य पारंपरिक पकवानों की खुशबू फैल गई. खासतौर पर तिल-गुड़ के व्यंजन का खास महत्व है. जिन्हें मिठास और अपनापन बढ़ाने का प्रतीक माना जाता है.
देशभर में उत्सव का माहौल है, और हर कोई इस पर्व को अपनी संस्कृति और परंपरा के अनुसार मना रहा है. मकर संक्रांति पर उमंग और उल्लास का यह पर्व नए ऊर्जा और खुशियों का संचार कर रहा.
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गरियाबंद : छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ यही आवाज छेरछेरा पर्व पर सोमवार ज़िला मुख्यालय सहित ग्रामीण अंचलों में गूंजा मांदर-ढोलक और झांझ-मंजीरा लिए जब नाचते-गाते, डंडा के ताल के साथ कुहकी पारते (लोकनृत्य में यह एक शैली है ताल के साथ मुंह से आवाज निकालने की इसे ही कुहकी पारना कहते हैं) युवाओं की टोली निकलती थी तो लोग उन्हें दान देने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते थे. छेरछेरा का असली रूप और असली मजा ऐसा ही होता था. जो अब कम ही देखने को मिलता है. लेकिन इस साल बच्चों में ख़ासा उत्साह देखने को मिला. छेरछेरा पर्व पर सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियाें ने हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगा. यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है.
छत्तीसगढ़ का लोक पर्व छेरछेरा नगर सहित समूचे अंचल में मनाया गया. बच्चे व बड़े बाजे-गाजे के साथ घर-घर पहुंचकर दान स्वरूप धान व पैसा मांगा. बच्चों ने दान देने वाले को आशीष दिया कि आपका धान का भंडार सदा भरा रहे. गांव के लोग भी उत्साह से बच्चों, युवाओं एवं बुजुर्गों को दान दिया.
इस अवसर पर अधिक संख्या में ग्रामवासी उपस्थित थे बुजुर्ग महिला धर्मीन बाई सिन्हा ने बताया कि यह पर्व फसल मिसाई के बाद खुशी मनाने से संबंधित है. पर्व में अमीरी गरीबी के भेदभाव से दूर एक-दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हुए कहते हैं. छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेरहेरा.. ऐसा माना जाता है कि धान के कुछ हिस्से को दान करने से अगले वर्ष अच्छी फसल होती है. इसलिए इस दिन किसान अपने दरवाजे पर आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करते. प्राचीन काल में राजा महाराजा भी इस पर्व को मनाते थे. छत्तीसगढ़ में प्राचीनकाल से छेरछेरा पर्व की संस्कृति का निर्वहन होते आ रहा है. लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए गए. किसानों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह दिखा। दरअसल यह त्योहार खेती-किसानी समाप्त होने के बाद मनाया जाता है. इस अवसर पर लोग गांवों से बाहर निकलते नहीं हैं। गांव में रहकर ही इस पर्व को मनाते हैं. वैसे इस पर्व की तैयारी सप्ताह भर पहले से शुरू हो गई थी.
सूरज सिन्हा ने बताया बाबू रेवाराम की पांडुलिपियों से पता चलता है कि कलचुरी राजवंश के कोशल नरेश कल्याणसाय आठ वर्षों बाद जब अपनी राजधानी रतनपुर पहुंचे तो रानी फुलकेना ने स्वर्ण मुद्राओं की बारिश करवाई रानी ने प्रजा को हर वर्ष इस तिथि पर आने का न्योता दिया। तब से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने छेरछेरा पर्व मनाया जा रहा.
छेरछेरा पर्व पर बच्चे, जवान व बूढ़े सभी ने टोली बनाकर घर-घर जाकर अन्न का दान मांगा। लोगों ने दान भी दिया. 3100 रुपए क्विंटल धान के कारण छेरछेरा का लोगों में विशेष उत्साह रहा.
इस वर्ष अच्छी फसल हाेने से छेरछेरा पर्व पर राैनक दिखाई दी। बच्चे छेरछेरा काेठी के धान हेर हेरा कहते हुए घर-घर पहुंचकर छेरछेरा मांगा। बच्चाें ने टाेलियां बनाकर बैंड पार्टी व कीर्तन मंडली के साथ घरों में सुबह 7 से छेरछेरा मांगने पहुंचे।पुराना मंगल बाज़ार मानस चौक संतोषी मंदिर बजरंग चौक सहित अन्य वार्डों और गांवों में बच्चों के साथ बड़ों में उत्साह देखने को मिला.
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