गरियाबंद, सारंगढ़, बस्तर, ओडिसा, राजस्थान, बिहार में दिखा भारत बंद का असर, जमकर किया प्रदर्शन, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने दिया समर्थन

The effect of Bharat Bandh was seen in Sarangarh Bastar Odisha Rajasthan Bihar massive protests took place Chamber of Commerce and Industries extended support

गरियाबंद, सारंगढ़, बस्तर, ओडिसा, राजस्थान, बिहार में दिखा भारत बंद का असर, जमकर किया प्रदर्शन, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने दिया समर्थन

SC-ST आरक्षण के मुद्दे पर आज गरियाबंद बंद, तिरंगा चौक पर संगठन के लोगों ने जमकर किया प्रदर्शन

गरियाबंद : सर्व आदिवासी समाज व अनुसूचित जाति सयुंक्त मोर्चा के तत्वधान एक दिन का भारत बंद आह्वान किया गया था. जिसके तहत आज गरियाबंद भी स्वस्फूर्त बंद रहा. नगर के तिरंगा चौक में समाज के लोगो ने भव्य प्रदर्शन किया. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के ख़िलाफ जमकर नारेबाजी की गई और आरक्षण बचाने के पक्ष में भी नारेबाजी की.
वही पुलिस प्रशासन अलर्ट मोड़ पर नज़र आया तिरंगा चौक से लेकर नगर के विभिन्न चौक चौराहे पर पुलिस मुस्तैद नजर आई थाना प्रभारी ओम प्रकाश यादव ने संभाल रखा था. 
उल्लेखनीय है कि विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण को लेकर दिए गए फैसले के बाद अनुसूचित जाति जनजाति के बीच नाराजगी देखी जा रही है. खास कर समाज में वर्गीयकरण को लेकर समाज के लोग भ्रमित व समाज को तोड़ने वाला बताते हुए फैसले का जमकर कर विरोध किया जा रहा है और आगे भी आंदोलन किए जाने की चेतावनी मोर्चा ने जारी की है मोर्चा ने महामहिम राष्ट्रपति व सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश के नाम ज्ञापन तैयार कलेक्टर को ज्ञापान्य सौपेंगे.
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बस्तर में दिखा भारत बंद का असर, चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने दिया समर्थन

बस्तर सम्भाग मुख्यालय में भारत बंद का बड़ा असर देखने को मिल रहा है, बुधवार को सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक बस्तर बंद का अव्हान किया गया है.
बस्तर चेंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने भारत बंद को शाम 5 बजे तक बन्द का समर्थन दिया है. बंद को कामयाब बनाने के लिए बुधवार सुबह से ही ST, SC और OBC वर्ग संगठन और समाज के लोग के लोग सड़कों पर निकले और दुकानों को बंद कराते दिख रहे.
इसके अलावा वाहनों को भी रोका जा रहा है. बंद के दौरान संभागीय मुख्यालय बस्तर में एक विशाल आक्रोश रैली निकाली गई. सड़क पर थमे वाहनों के पहिए, आपको बता दें कि जगदलपुर से 15 किलोमीटर दूर ग्राम केशलूर चौक दो नेशनल हाईवे NH30और NH63 सड़क से जुड़ा है. नेशनल हाइवे 30 जो ओड़िसा, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना को जोड़ता है, वहीं नेशनल हाइवे 63 महाराष्ट्र को जोड़ता है.
केशलूर चौक में बड़ी तादाद में बस्तर के मूल निवासी सुबह से मौजूद थे. कुछ देर जाम की हालत भी बन गई थी. इसके बाद चारपहिया निजी वाहन और मोटरसाकिल के अलावा स्वास्थ्य से जुड़ी वाहनों को छोड़ा गया. वहीं सड़क के दोनों तरह बसें और ट्रकों की लंबी कतार लग गई. बस्तर बंद को देखते हुए भारी तादाद में पुलिस बल को भी नगर में तैनात जगह जगह किया गया है.
सर्व आदिवासी समाज के युवाओं के मुताबिक वे अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. इसलिए बस्तर बंद किए हैं. भीमराव अंबेडकर के संविधान से छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी. इसके अलावा संविधान संशोधन करने और सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश को वापस लेने की मांग भी युवाओं ने की है. बस्तर बंद के दौरान यात्रियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि सभी दुकाने बंद हैं. इसलिए घरेलू सामान समेत रोजमर्रा की चीजें नहीं मिलने से लोग परेशान हैं.
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गरियाबंद जिले के कई शहरी इलाका जैसे राजिम, मैनपुर, गोहरापदर, धुरवागुड़ी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण में वर्गीकरण का विरोध किया गया. क्रिमिलेयर के बारे में असंवैधानिक निर्णय का पर भारत बंद कोलेजियम सिस्टम कर देश के सभी वर्गों को न्यायपालिका भागीदारी देने की मांग किया जा रहा. पुलिस प्रशासन के द्वारा किया गया कड़ी सुरक्षा का व्यवस्था किसी जान मॉल नुकसान ना हो.

भारत बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज, पुलिस ने SDM साहब को भी पीटा

बिहार की राजधानी पटना में एक अजीब घटना घटी. जिसमें भारत बंद के विरोध में व्यस्त सड़क पर इकठ्ठा हुए प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज के दौरान एक पुलिसकर्मी ने शहर के एसडीएम को लाठी मार दी. जब लाठीचार्ज शुरु हुआ तो एसडीएम श्रीकांत कुंडलिक खांडेकर सड़क के बीच में खड़े थे और गुस्साए पुलिस कर्मियों की कार्रवाई की चपेट में आ गए.
भारत बंद के विरोध के दौरान पटना में जमकर बवाल हुआ. बंद समर्थकों की पुलिस से झड़प हो गई. जिसके बाद सुरक्षाकर्मियों को बंद करवाने वाले समर्थकों पर लाठीचार्ज करना पड़ा. समर्थकों का जुलूस गांधी मैदान से आगे बढ़ रहा था तभी पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए हल्का बल प्रयोग किया. इस दौरान एसडीएम श्रीकांत कुंडलिक खांडेकर की भी पिटाई हो गई.
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अनुच्छेद 341 में राष्ट्रपति, सांसद के अलावा अजा की लिस्ट में किसी तरह के बदलाव के लिए कोई भी अधिकृत नहीं है. अजा और अजजा संविधान के अनुच्छेद 341(2), 342(2) के तहत किसी अजा और अजजा को लिस्ट में जोड़ा या उसे हटाया तभी जा सकता है. जब इस प्रक्रिया में राज्य सरकार ने पूरी तरह अध्ययन कर आंकड़े के साथ अपनी सिफारिश केंद्र सरकार को भेजती है. संबंधित मंत्रालय राज्य सरकार के प्रस्ताव को भारत के रजिस्ट्रार जनरल गृह मंत्रालय को भेजता है. अगर सिफारिश आती है तो फिर इसको संबंधित आयोग के अनुशंसा के प्रस्ताव के लिए भेजा जाता है. सभी दस्तावेजों के साथ अगर आयोग भी अपनी सहमति देता है तो फिर मंत्रालय द्वारा कैबिनेट में रखा जाता है. अगर कहीं एक से भी असहमति आने पर प्रस्ताव आगे कार्रवाई नहीं होती है. कैबिनेट की अनुमति के बाद ही लिस्ट में संशोधन के लिए संसद में बिल रखा जाता है. संसद से पारित होने पर राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने होने के बाद भारत के राजपत्र में अधिसूचना जाने के बाद ही संशोधन प्रभावित होता है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 1 अगस्त को दिए गए फैसले अजा और अजजा वर्ग के कोटे के अंदर कोटा और कोटा के अंदर क्रीमीलेयर निर्धारित करने का हक राज्यों को देने फैसला पारित किया है.
इस फैसले से देश भर के अजजा और अजा वर्ग प्रभावित हो रहे हैं. हकीकत में  में अजा और अजजा वर्ग के भीतर उप वर्गीकरण करने का हक राज्यों को नहीं है. क्योंकि आर्टिकल 341 (2) एवं 342 (2) यह हक देश के सांसद को देता है और यही बात ई वी चिनैया मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 2005 में कहा था. पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में 1 अगस्त 2024 के फैसले में 7 जजों में से एक जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी जी ने 6 जजों के फैसले से असहमति जताते हुए अपना फैसला उपवर्गीकरण और क्रीमीलेयर के खिलाफ दिया है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने 9 जजों की संवैधानिक पीठ इंदिरा साहनी मामले 1992 में जस्टिस जीवन रेड्डी के कथन को उद्धृत करते हुए फैसला लिखी है कि क्रीमी लेयर टेस्ट सिर्फ पिछड़े वर्ग तक सीमित है. अजा व जजा के मामले में इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है.
भविष्य में बगैर भरी रिक्त सीट सामान्य कोटे में अघोषित रुप से तब्दील हो जाएगी. एससी एसटी के भीतर ओबीसी की तरह क्रीमी लेयर लागू होने से यह वर्ग दो भागों में बंट जाएगा. जो मुख्यधारा की तरफ थोड़ा आगे बढ़ रहे हैं. वे क्रिमि लेयर के दायरे में आ जाएंगे. यह वर्ग प्रतियोगिता में शामिल होने के पहले ही अघोषित रुप से बाहर हो जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देश के 100 सांसदों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की. अगले दिन अखबार में आया कि- पीएम एससी, एसटी के भीतर क्रीमी लेयर लागू नहीं करेंगे. लेकिन उप वर्गीकरण पर चुप्पी साधे हुए हैं. यह सिर्फ कोरा आश्वासन है. देश भर के एससी, एसटी वर्ग कोरे आश्वाशन में यकीन नही रखते. अगर भारत सरकार वास्तव में एससी, एसटी हितैषी है तो फौरन संसद सत्र बुलाकर पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले 1 अगस्त 2024 के आए फैसले को पलटते हुए संविधान संशोधन लाए.
एससी, एसटी वर्ग जो मुख्य धारा में अब तक नहीं जुड़ पाए है. उनके लिए राज्य के नीति निदेशक तत्व अनुच्छेद 38(2) में आर्थिक असमानताओं को दूर करने विशेष प्रावधान राज्यों को करने कहा है. इसी के परिपालन में एससी, एसटी के लिए 1980 से अलग SCP, TSP बजट का प्रावधान किया गया है. लेकिन यह बजट सिर्फ कागजों तक सीमित हो रही है. 1980 से 2024 तक करीब 44 साल में इस बजट प्रावधान से अब तक कितने एससी, एसटी मुख्यधारा में जुडे, जो नहीं जुड़ पाए हैं. वो आखिर क्यों नहीं जुड पाए. इसका सोशल आडिट सरकारे क्यों नहीं करती. जबकि नीति आयोग के दिशा निर्देश के मुताबिक एससी, एसटी वर्ग के आबादी के अनुपात में इन वर्गों के आर्थिक उत्थान के लिए आबादी के अनुपात में बजट प्रावधानित कर लक्षित उद्देश्यों में खर्च किया जाए. लेकिन केंद्र और राज्य की सरकारें इस बजट का महज 1 से 2% राशि ही लक्षित उद्देश्यों में खर्च करती है. बाकि फंड राजनीतिक पार्टियों की चुनावी गारंटी पूरा करने में खर्च होती है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को स्वमेव संज्ञान लेनी चाहिए.
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लोकसभा सत्र 2023 में पूछे गए सवाल में डॉक्टर जितेंद्र सिंह केंद्रीय मंत्री ने सदन में जानकारी देते हुए बताया कि भारत सरकार के 91 एडिशनल सेक्रेटरी में से एससी, एसटी वर्ग के 10 और ओबीसी वर्ग के 4 हैं. बाकी सब जनरल केटेगरी से है. वहीं 245 जॉइंट सेक्रेटरी में से एससी एसटी के 26 और ओबीसी के 29 अफसर हैं. ये स्थिति केंद्रीय सचिवालय की है. देश की उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट की बैचों में अनुसूचित जाति जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधित्व के लेकर पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा सत्र के दौरान ही बताया कि 2018 से जुलाई 2023 तक नियुक्त 604 हाई कोर्ट जजों में से 458 जज सामान्य श्रेणी के हैं. अनुसूचित जाति के 18 अनुसूचित जनजाति के 9 और पिछड़े वर्ग के 72 है. यानी भारत की आबादी में करीब 17% प्रतिनिधित्व करने वाली अनुसूचित जाति वर्ग की उच्च न्यायालयों के बैचों में महज 3% प्रतिनिधित्व है.
वहीं देश की आबादी में 8% भागीदारी करने वाली जनजाति वर्ग की महज 1% प्रतिशत प्रतिनिधित्व है. जबकि 1999 में गठित करिया मुंडा की रिपोर्ट में उच्च एवम उच्चतम न्यायालयों को अनुच्छेद 16/4) सहपवित अनुच्छेद 335 के तहत जजों की नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान करने अनुशंसा किया है.
रिपोर्ट में कहा है कि 13 जजों की बेंच केशवानंद भारती मामले में माना कि अदालत भी राज्यों की श्रेणी में आते है. इसलिए न्यायालयो में न्यायधीशों की नियुक्तियों में अनुसूचित जाति एवम जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान करना चाहिए. यह रिपोर्ट सन 2000 में संसद में प्रस्तुत की गई, लेकिन अब तक लोकसभा में इस पर चर्चा के लिए नहीं लाया गया. यह बात स्पष्ट दर्शाता है कि सरकारें एसटी, एससी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के नाम पर अब तक उदासीनता बरती है.
देश में महज कागजों में खानापूर्ति चल रही है. हकीकत में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग को प्रतिनिधित्य का हक सदियों से वंचित रहने और पिछड़ेपन के कारण मिला है आर्थिक आधार पर नहीं. सरकारे संविधान सभा में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी की वक्तव्य को अध्ययन कर सकती है.
दूसरी बात संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते हैं. जिसके अंतर्गत एससी, एसटी वर्गों के सभी सरकारी सेवाओं में दावे का प्रावधान है. लेकिन न्यायालय और सरकारें इन वर्गो को सिर्फ अनुच्छेद 164) के तहत ही शासित समझाती है. जबकि अनुच्छेद 164) एवम् अनुच्छेद 335 यह सहपठित प्रावधान है.
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अपने आप में कानून है. इसे सिर्फ संविधान संशोधन से ही बदला जा सकता है. कोरे आश्वासन से नहीं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अमल 1 सितंबर से शुरु हो सकता है. कई राज्य पहले से ही वर्गीकरण करने को तैयार बैठी है. आंध्र प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र कर्नाटक बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु तेलंगाना, 2004 की गठबंधन केंद्रीय सरकार इत्यादि ने पहले उप वर्गीकरण करने कोशिश की थी. लेकिन ई वी चिनैया फैसले ने इनके मनसुबो पर पानी फेर दिया. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त के फैसले से ई बी चिनैया फैसले को 7 जजों की बेंच ने पलट दिया.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में 6178 फरवरी 2024 को लगातार 3 दिनों तक चली सुनवाई में भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल और कई राज्यों की तरफ से शामिल अधिवक्ताओं ने उप वर्गीकरण का समर्थन किया है. इससे साफ मंशा जाहिर होती है कि केंद्रीय और राज्यो की सरकारें अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों में फुट डालना चाहती है और संविधान में मिले आरक्षण को खत्म करना चाहती है.
इसलिए इन्ही सब मुद्दो को लेकर देशभर के अनुसूचित जनजाति एवम अनुसूचित जाति वर्ग 21 अगस्त भारत बंद का आह्वान किया है. और भारत सरकार का निम्न बिंदुओं पर ध्यान आकृष्ट कराना चाहते हैं. माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील संख्या 2317/2011 पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में आए 1 अगस्त 2024 के फैसले को पलटते हुए केंद्र सरकार फौरन संविधान संशोधन लाए.
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अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण मामले को अघोषित रुप से निष्प्रभावी करने वाली सुप्रीम कोर्ट के एम नागराज बनाम भास्त संघ निर्णय 2006, जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता निर्णय 2018 और जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता द्वितीय निर्णय 2022 में आए फैसले एससी एसटी वर्ग के क्वांटिफिएबल डाटा एकत्र करने की पेचीदगियों को खत्म करने के लिए संविधान संशोधन लाया जाए. क्योंकि एससी, एसटी अनुच्छेद 335 के तहत शासित होते है. जिसके अंतर्गत सभी सरकारी सेवा के पदों में एससी, एसटी के दावे का प्रावधान है. एम नागराज निर्णय 2006 के बाद एससी, एसटी के दावे का लगातार हनन केंद्र और राज्य की सरकारें कर रही है.
छ.ग. राज्य में माननीय उच्च न्यायालय छ.ग.बिलासपुर वाद कमांक 9778/2019 में आए फैसले 16 अप्रेल 2024 के परिपालन में शासन को 3 महीने के भीतर नए पदोन्नति में आरक्षण नए नियम बनाने का निर्देश दिया था. छ.ग. सरकार अब तक इस मामले में कोई ठोस कदम नहीं उठाई है. छ.ग. सरकार अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के लिए पदोन्नति में आरक्षण नियम तत्काल कियान्वित करें.
अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों को प्रतिनिधित्व का हक और सुविधाएं उनके ऐतिहासिक पिछड़ेपन की वजह से मिली है. ना की आर्थिक. इसके बावजूद एससी, एसटी वर्ग के विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप के लिए आय के प्रमाण की जरुरत पड़ती है.
केंद्र सरकार द्वारा सन 2011 में एससी, एसटी वर्ग, ओबीसी वर्ग के लिए छात्रवृत्ति हेतु ढाई लाख आय सीमा में रखी गई है. जिसका संशोधन अब तक नहीं किया गया है. इसकी वजह से अनुसूचित जाति जनजाति एवम पिछड़े वर्ग चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के बच्चों को भी छात्रवृत्ति का फायदा नहीं मिल पा रहा है. इसलिए इस मामले पर संज्ञान लेते हुए भारत सरकार अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्गों के विद्यार्थियों के लिए आय प्रमाण पत्र की जरुरी को खत्म करें.
सन 2000 में लोकसभा में पेश करिया मुंडा की रिपोर्ट न्यायपालिका में अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए जजों की नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान करने संबंधी अनुशंसा को लागू करें. ओबीसी वर्गों में क्रिमिनल का प्रावधान बंद करने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए. नीति आयोग के निर्देशानुसार अनुसूचित जाति जनजाति वर्गों के लिए आवंटित पृथक बजट.
अनुसूचित जाति कंपोनेंट प्लान एवं ट्राइबल सब प्लान की राशि का 100% लक्षित उद्देश्यों में खर्च करने के लिए कानून बनाया जाए और जो भी जिम्मेदार अधिकारी इस कानून को लागू करने में कोताही बरते. उनके ऊपर दंड प्रावधान करने संबंधी कानूनी प्रावधान किया जाए.
देश भर के अनुसूचित जन जाति बाहुल्य क्षेत्र में लागू पांचवी अनुसूची अंतर्गत पेसा कानून के दिशा निर्देशों का समुचित पालन किया जाए और इस फैसले के परिपालन में कोताही बरतने वाले अधिकारियों के ऊपर दंड का प्रावधान किया जाए. 8, 9वीं अनुसूची को कानूनी समीक्षा के दायरे से बाहर रखें जाने संबंधी संविधान संशोधन लाया जाए. क्योंकि 1973 केशवनंद भारती मामले में सुप्रीमकोर्ट की 13 जजो की बेंच ने 9वी अनुसूची कानून को न्यायिक समीक्षा के भीतर माना है.
सन 2021 से लंबित जाति गत जनगणना अविलंब किया जाए विशेष वर्गों को बैक डोर से एंट्री देने वाली लैटरल एंट्री केंद्र सरकार तत्काल खत्म करें और सरकारी संस्थाओं को बेचना बंद करे. साथ ही निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण का प्रावधान करने संविधान संशोधन लाए.
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सारंगढ़ बंद पूरी तरह सफल

सारंगढ़ : सुप्रीम कोर्ट द्वारा अजा व अजजा वर्ग के कोटे के अंदर कोटा व कोटे के कोटे के अंदर क्रीमीलेयर लागू करने के फैसले को पलटने संविधान संशोधन लाने भारत बंद किया गया. कलेक्टर को दिए गए ज्ञापन में कहा गया कि हजारों साल से अजा और अजजा वर्गों के साथ हुए भेदभाव, छुआछूत, अत्याचार की वजह से पिछड़े वर्गों को समाज के मुख्यधारा में लाने के लिए भारत के संविधान निर्माता ने संविधान में अनुच्छेद 12,14 15, 16, 17, 46, 330, 332, 335, 341 और 342 इत्यादि का प्रावधान कर इन वर्गों को राज्य के सेवाओं में व शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण का अधिकार दिया है. लेकिन इन अधिकारों को समय-समय पर अदालत के जरिए निष्प्रभावी करने की कोशिश की है. जिससे संविधान में 77वां 81वां, 82वां और 85वां संविधान संशोधन किया गया. इसका नवीनतम उदाहरण मा उच्चतम न्यायालय के 7 न्यायधीशो की संवैधानिक पीठ के द्वारा 1 अगस्त 24 को दिया गया फैसला है. इसके द्वारा अजा और अजजा के संवैधानिक प्रावधानों में हस्तक्षेप किया गया है. इस फैसले का अजा अजजा और संयुक्त समाज सारंगढ़, छग विरोध करता है.
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